मारुतराज, BHOPAL. अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इसे बीजेपी-आरएसएस का राजनीतिक कार्यक्रम बता रहा है। वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी सहित पूरा एनडीए इसे हिंदु बहुसंख्यक की भावनाओं से जोड़ रहा है। उनकी प्रतिष्ठा का विषय बता रहा है। राजनीति के जानकार भी मान रहे हैं कि इस बार राम मंदिर बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित होगा। हालांकि, पिछला रिकॉर्ड बताता है कि राम के सहारे चुनाव में गई बीजेपी की नाव दो बार डूब चुकी है। इसके बाद भी इस बार फिर बीजेपी ने मोदी की अगुवाई में राम मंदिर के सहारे 400 प्लस की रणनीति बनाई है। इसको लेकर चुनावी जानकारों की अलग-अलग राय है।
2024 में रामजी बीजेपी को पार लगाएंगे
एमपी के वरिष्ठ पत्रकार नितिन शर्मा का कहना है कि 90 के दशक में बीजेपी को राम मंदिर के मुद्दे पर उतनी सफलता नहीं मिल सकी, ये बात सही है। उस समय बीजेपी या कहें संघ ने हिंदुत्व को फ्रंट में लाने की शुरूआत ही की थी, जिसके परिणाम तत्काल आने लगेंगे, ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी। हालांकि, जो चुनाव परिणाम आए उसके लिए उस समय की लीडरशिप को भी देखना होगा। आज नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी है। यह एग्रेसिव तरीके से हिंदुत्व को लेकर चल रही है। इसके लिए उन्हें सोशल मीडिया का भी फायदा मिल रहा है। 2024 के चुनाव में रामजी बीजेपी की नाव को पार लगाएंगे, इसमें कोई शक नहीं है।
विपक्ष को अपना नेटवर्क खड़ा करना होगा
एमपी के वरिष्ठ पत्रकार राकेश मालवीय की राय जुदा है। उनका मानना है कि कांग्रेस या कहें की विपक्षी गठबंधन को एक रणनीति पर काम करना होगा। विपक्ष अपना जनसंपर्क नेटवर्क बनाने में सफल हो जाता है तो बहुत हद तक उसे सफलता मिल सकती है। मालवीय का कहना है कि मोदी सरकार को 35 फीसदी वोट मिले थे पिछली बार और विपक्ष के वोट का प्रतिशत करीब करीब 65 था। ऐसे में यह कह सकते हैं कि उत्तर भारत को छोड़कर देश का एक बड़ा हिस्सा और वोट है, जो मोदी के साथ नहीं है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष किस तरह अपनी बात लोगों तक पहुंचाता है और उसे वोट में बदलता है।